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गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली

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 गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली परिचय "गोंड जनजाति की पारंपरिक चित्रकला" गोंड जनजाति भारत की सबसे प्राचीन और विशाल जनजातियों में से एक है, जो मुख्यतः मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में निवास करती है। गोंड शब्द 'कोंड' से बना है, जिसका अर्थ होता है 'पहाड़ी लोग'। 🏠 रहन-सहन और निवास गोंड समुदाय आमतौर पर गांवों में समूहबद्ध होकर रहते हैं। उनके घर मिट्टी और बांस की सहायता से बनाए जाते हैं और छतें पुआल की होती हैं। दीवारों को 'दिगना' नामक परंपरागत चित्रों से सजाया जाता है। 🍲 भोजन और खान-पान गोंड जनजाति का खान-पान पूरी तरह प्रकृति पर आधारित होता है। वे मक्का, कोदो, कुटकी और महुआ का उपयोग अधिक करते हैं। महुआ से बनी शराब उनके सामाजिक उत्सवों का अहम हिस्सा है। 💍 विवाह और परंपराएं गोंड समाज में विवाह एक सामाजिक आयोजन होता है। दहेज प्रथा नहीं के बराबर होती है। विवाह से पूर्व लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद कर सकते हैं। विवाह गीत, नृत्य और पारंपरिक वस्त्र पूरे समारोह को रंगीन बना देते हैं। 🎨 कला और संस्कृति गोंड चित्रकला ...

जिला छतरपुर के किले एवं गढियां

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 जिला छतरपुर के किले एवं गढि़यां  छतरपुर, पन्‍ना - झांसी मार्ग पर स्थित है। यहां से खजुराहो, महोबा, टीकमगढ, हरपालपुर पहुंचा जा सकता है। समीपस्‍थ मध्‍य रेलवे की झांसी - मानिकपुर व छतरपुर - ललितपुर - भोपाल शाखा का रेलवे स्‍टेशन है। इस नगर का संबंध महाराजा छत्रशाल से जुडा हुआ है। महाराजा छत्रशाल ने इस जंगली क्षेत्र को अपनी कर्मठता से अभिसिंचित करकेे मउ सहानियां के पास एक नयागांव, अपनी पुरानी जागीर महेवा - नुना के नाम पर महेवा बसाकर किला और अपना रनवास बनाया था। फिर सुरक्षा की दृष्टि से पन्‍ना को राजधानी बनाया। इस जिले में जितने भी किले थे प्राय: छत्रशाल के वंशजों के ही थे। सिंदुरखी, बसारी, इमिलिया, बिक्रमपुर, मरकारी, ललपुर, टटम, बर्रोही, पहरा, बिलहरी ''  इन सभी रियासतों के जागीरदार क्रमश: लल्‍ला पहाड सिंह, रानी नन्‍हीं दुलैया, दीवान कीरत सिंह, दीवान अमान सिंह, राव बैंकटराव, दीवान उमराव सिंह, दीवान मानसिंह एवं बिलहरी के माफीदार दीक्षित माधवराम थे। इन सभी जागीरदारोंं की गढीं थीं।  आलीपुरा:- यह झांसी - छतरपुर सड़क मार्ग पर स्थित है। इसका निकटतम रेलवे स्‍टेशन हरपा...

मध्यप्रदेश का इतिहास

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मध्यप्रदेश का इतिहास गुप्त वंश मगध जनपद बौध्द काल तथा उत्तर भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। मगध देश में वैभवहीन छोटे −मोटे राजा ही रह गये थे। इनमें से एक राजा चन्द्रगुप्त प्रथम का विवाह नेपाल के लिच्छवि वंश में हो गया था। लिच्छवि वंश में विवाह हो जाने से, उनका गौरव बहुत बढ़ गया, क्याेंकि वह वंश बहुत प्राचीन , प्रतापी और प्रभावशाली था। लिच्छवियों से उसे प्राचीन वैभवशाली राजधानी पाटलिपुत्र प्राप्त हो ग ई। तब तो चंद्रगुप्त प्रथम ने अवसर पाकर अपना महत्व इतना बढ़ाया की शीघ्र  ही उसने अपने आपको महाराजाधिराज के  विरूध्द घोषित कर दिया और गुप्त नामक वंश का प्रचार सन् 320  ई में कर दिया। एरणः− एरण जो  कि मध्यप्रदेश के सागर  जिले में विदिशा के निकट बेतवा नदी के  किनारे स्थित है। वहां से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510  ई का है। इसे भानुगुप्त का अभिलेख कहते हैं।   स्वभोग नगर एरणः−      चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र समुद्रगुप्त हुआ,  जिसने अपने पिता की तरह अपने राज्य को चहुंओर फैलाने का प्रसार किया और अनेक राजाओं को परास्त कर उन्हें मांड...