मध्यप्रदेश का इतिहास
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मध्यप्रदेश का इतिहास
गुप्त वंश
एरणः− एरण जो कि मध्यप्रदेश के सागर जिले में विदिशा के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित है। वहां से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई का है। इसे भानुगुप्त का अभिलेख कहते हैं।
चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र समुद्रगुप्त हुआ, जिसने अपने पिता की तरह अपने राज्य को चहुंओर फैलाने का प्रसार किया और अनेक राजाओं को परास्त कर उन्हें मांडलिक बना दिया। जब वह दिग्विजय को निकला तो सागर जिले से ही होकर दक्षिण को गया। जान पड़ता है िक उसे बहुत प्रिय लगा, क्योंकि उसने बीना नदी के किनारे एरण में ” स्वभोग नगर” बसाया, जिसके खण्डहर वर्तमान में भी मौजूद है। एरण में एक शिलालेख मिला है उसी में इस बात का उल्लेख पाया गया है। यह पत्थर विष्णु के मंदिर में लगवाया गया था। समुद्रगुप्त की दिग्विजय की प्रशस्ति इलाहाबाद की लाट में खुदी है, जिसमें अनेक जातियों और राजाओं के नाम लिखे हैं, जिन्हें जीतकर उसने अपने वश में कर लिया अथवा विध्वंश कर डाला था। उसमें से एक जाति खर्परिक है जो दमोह या उसके आस−पास के जिलों में अवश्य रही होगी। उस जिले के बटियागढ़ नामक स्थान में 14वीं शताब्दी में एक शिलालेख मिला है जिसमें खर्पर सेना का उल्लेख है। ये प्राचीन खर्परिक से भिन्न नहीं हो सकते , ये बडे़ लड़ाकू जान पड़ते हैं क्योंकि इनको सैनिक बनाकर रखना मुसलमानों तक को भी अभीष्ट था, इसी कारण महमूद सुल्तान की ओर से इन लोगों की सेना बटियागढ़ में रहने लगी थी। पीछे से लड़ाई पेशावाली जातियों की जो गति हुई वह इनकी भी हुई। अब इन लोगों की एक अलग जाति खपरिया नाम की हो गई है जो बुन्देलखण्ड में विशेष रूप से पायी जाती है। समुद्रगुप्त ने महाकौशल के राजा महेंद्र से लड़ाई ली और उसे हरा दिया। इसी प्रकार महाकांतर के राजा व्याघ्रदेव को भी हराया। यह कदाचित बस्तर का कोई भाग रहा होगा जहां पर इस समय भी बड़ा भारी जंगल है। इलाहाबाद की प्रशस्ति में आटविक (जंगली) राज्यों के जीतने का भी जिक्र है। जान पड़ता है कि प्राचीन काल से अष्टादश अटवी राज्य अर्थात् अठारह वनराज्य प्रसिध्द थे। इनके पड़ोसी उच्चकल्प के महाराजा थे जो उचहरा में राज्य करते थे। उच्चकल्प का ही अपभ्रंश उचहरा जान पड़ता है। इनकी वंशावली ओंघदेव से आरंभ होती है जिसका विवाह कुमारदेवी से हुआ था। इनका पुत्र कुमारदेव हुआ जिसने जयस्वामिनी से विवाह किया तथा इनका पुत्र जयस्वामिन् हुआ । तथा इनका लड़का सर्वनाथ हुआ जिसका राज्यकाल 449 ई0 के लगभग जान पड़ता है। इसके बाद इसने अश्वमेघ यज्ञ किया जो पुष्यमित्र के समय से बीच में कभी नहीं हुआ था। मौर्यवंश में चंद्रगुप्त का पोता अशोक और गुप्तवंश में चंद्रगुप्त का लड़का समुद्रगुप्त दोनों तेजस्वी निकले । समुद्रगुप्त भारतीय नेपोलियन कहलाता था। यद्यपि कोई उसे सिकंदर की उपमा देते हैं जिससे यह अर्थ निकलता है कि उसकी विजय चिरस्थायी नहीं थी। अन्ततः यह तो मानना पड़ेगा कि दिग्विजय में वह अद्वितीय हो गया था, उसी प्रकार धर्मप्रचार में अशाेक से बढ़कर दूसरा कोई नहीं हुआ। समुद्रगुप्त केवल वीर ही नहीं था, वरन् वह योध्दा, कवि और उच्च श्रेणी का गायक भी था।
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