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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भील जनजाति

  भील जनजाति भील जनजाति भारत की प्रमुख आदिवासी जनजातियों में से एक है। ये जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, अंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में निवास करती है। भील जनजाति की अपनी विशेष सांस्कृतिक विरासत और परंपराएं हैं, जो उन्हें अन्य जनजातियों से अलग बनाती हैं। भील लोगों की जीवनशैली मुख्य रूप से गांवों में आधारित है। उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि है, लेकिन वे धान, गेहूं, जोवार, बाजरा, राजमा, और तिलहन जैसी फसलों की खेती करते हैं। इसके अलावा, उनका आर्थिक स्रोत है चिड़िया पकड़ना, जंगल से लकड़ी की खाद्य सामग्री तथा वन्यजीवों का शिकार करना। भील जनजाति की सामाजिक संरचना मुख्य रूप से समाजवादी है, जिसमें समानता और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा, भील समुदाय में सांस्कृतिक गाने, नृत्य, और रंगमंच कला की अमूल्य धरोहर है। हालांकि, भील जनजाति के लोगों को अपनी शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत है। सरकार को उनके विकास के लिए उपयुक्त योजनाओं की शुरुआत करनी चाहिए ताकी भील समुदाय के लोगों को समृद्धि और समानता का मार्ग प्र सशस्‍त ह

बुन्‍देलखण्‍ड के दुर्ग ( MP Ke Durg)

  बुन्‍देलखण्‍ड के दुर्ग :- कालिंजर का दुर्ग अजयगढ का दुर्ग  रसिन का दुर्ग मडफा  का दुर्ग शेरपुर सेवडा का दुर्ग रनगढ का दुर्ग तरहुआ का दुर्ग भूरागढ का दुर्ग कल्‍याणगढ का दुर्ग महोबा का दुर्ग सिरसागढ का दुर्ग जैतपुर का दुर्ग मंगलगढ का दुर्ग मनियागढ का दुर्ग बरूआसागर का दुर्ग ओरछा का दुर्ग झाँँसी का दुर्ग गढकुढार का दुर्ग चिरगांव का दुर्ग एरच का दुर्ग उरई का दुर्ग कालपी का दुर्ग दतिया का दुर्ग ग्‍वालियर का दुर्ग चन्‍देरी का दुर्ग बढौनी का दुर्ग सिंगौरगढ का दुर्ग पन्‍ना का दुर्ग छतरपुर का दुर्ग राजनगर का दुर्ग बटियागढ का दुर्ग बिजावर का दुर्ग या जटाशंकर का दुर्ग बीरगढ का दुर्ग धमौनी का दुर्ग पथरीगढ का दुर्ग बारीगढ का दुर्ग गौरीहार का दुर्ग कदौरा का दुर्ग कुलपहाड का दुर्ग तालबेहट का दुर्ग देवगढ का दुर्ग ।

संत सिंगा जी महाराज

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संत सिंगाजी मंदिर:-  संत सिंगाजी समाधि स्‍थल  संत सिंगा जी का परिचय:- निमाड के प्रसिध्‍द संत  सिंगा जी का जन्‍म म.प्र. के बडवानी जिले के खजूरी गांव एक गवली परिवार में हुआ था । इनके पिता जी का नाम श्री भीमा जी गवली और माता जी का नाम गवराबाई था। इनके तीन संतान थी जिसमें बडे भाई का नाम श्री लिम्‍बाजी और बहिन का नाम किसनाबाई था।  संत सिंगा जी की चार संताने थी जो क्रमश: है  - श्री कालू जी, श्री भोलू जी, श्री सदू जी और श्री दीप जी। सदियों से चली आ रही हमारी आध्‍यात्‍मिक मान्‍यताओं और उसके परिणामों से इन संतो का गहरा नाता रहा है। समाज में नैतिक मूल्‍यों और आदर्शों की स्‍थापना के लिए काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह के लिए परित्‍याग,आहार- विहार पर संयम से व्‍यवहार करने पर बल दिया है ।  शब्‍द के पार सामरथ संत सिंगाजी महाराज:- ज्ञान की नौबत बाजे, संत सिंगाजी गाजे। ब्रह्मगिर को हुआ अचरज, कहो कौम हुआ सामरथ।। निमाड की संत परम्‍परा में संत सिंगाजी का स्‍थान सबसे उपर है। वे एक संत ही नहीं कवि-मनीषी भी थे। उनके साधना पथ में हुए अनुभवों को अपनी काव्‍यभाषा में कहना भी जानते थे। कहते हैं कि उन्‍होनें ग्‍यारह

बुन्‍देलखण्‍ड का पहला परमार शासक और उसका कार्यकाल

पुन्‍यपाल परमार और बुन्‍देलखण्‍ड    पुन्‍यपाल परमार का नाम पवाया के शासक के रूप में बुन्‍देलखण्‍ड के इतिहास में तेरहवीं सदी के मध्‍य में मिलता है। कहीं-कहीं पुन्‍यपाल परमार को 'प्रनपाल परमार' भी लिखा गया है। यह पवाया प्राचीन इतिहास की सुप्रसिध्‍द नगरी पदमावती है। यहां प्रथम शताब्‍दी से चौथी शताब्‍दी तक नागों का राज्‍य रहा था। पदमावती के संबंध में प्राचीनतम उल्‍लेख विष्‍णुपुराण में भी मिलता  है। सातवीं सदी की कृति बाणभट्ट के हर्षचरित में भी पदमावती का उल्‍लेख मिलता है।                                                            इसी क्रम में संस्कृत कवि - नाटककार भवभूति ने अपने नाटक ' मालती माधव' में भी इस नगर के गौरव का उल्‍लेख किया है। ग्‍यारहवीं सदी की कृति 'सरस्‍वती कंठाभरण' परमार राजा 'भोज कृत' में भी पदमावती का उल्‍लेख आया है, यहां कभी विश्‍वविद्यालय भी था। और देशक के सुदूर भागों से यहां विद्वान एवं छात्र अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु आते थे। यह स्‍‍थान वर्तमान में ग्‍वालियर जिले के भितरवार तहसील से पूर्व की ओर दस-बारह किलोमीटर दूर सिंध और पारवती क

सकारात्‍मक भावनाएं बनाम नकारात्‍मक भावनाएं

  पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स क्या हमें इन दोनों  इमोशन्‍स की ही ज़रूरत है? अक्सर हम सकारात्मकता यानी पॉज़िटिविटी का मतलब पॉज़िटिव इमोशन समझ लेते हैं.। जब भी किसी ख़ुशहाल व्यक्ति की कल्पना की जाती है हम यह मानकर चलते हैं कि उसके अंदर पॉज़िटिव इमोशन्स कूट-कूटकर भरे गए होंगे। बल्कि हम यह भूल जाते हैं कि इंसान पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स यानी सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को उचित मात्रा में मिलाकर बनाया हुआ एक प्राणी  है।  जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह इंसान की  भावनाओं के भी दो पक्ष हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक भावनाओं की तरह ही नकारात्मक भावनाएं भी जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं।  दरअसल हम कह सकते हैं कि नकारात्मक भावनाएं ही हैं, जो हमें सकारात्मक भावनाओं के महत्व को समझाने में मदद करती हैं।  तो फिर हम इन दोनों भावनाओं के  महत्‍व और  इनका हमारे जीवन में उपयोगिता के बारे  में समझते हैं -  पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स  क्या हैं    ?  वह सोच या भावनाएं, जो हमें आमतौर पर अपने आप को अच्छा महसूस कराती हैं, उन्हें हम पॉज़िटिव इमोशन कह सकते हैं। ये भावनाएं हमारे आसप