भील जनजाति

  भील जनजाति भील जनजाति भारत की प्रमुख आदिवासी जनजातियों में से एक है। ये जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, अंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में निवास करती है। भील जनजाति की अपनी विशेष सांस्कृतिक विरासत और परंपराएं हैं, जो उन्हें अन्य जनजातियों से अलग बनाती हैं। भील लोगों की जीवनशैली मुख्य रूप से गांवों में आधारित है। उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि है, लेकिन वे धान, गेहूं, जोवार, बाजरा, राजमा, और तिलहन जैसी फसलों की खेती करते हैं। इसके अलावा, उनका आर्थिक स्रोत है चिड़िया पकड़ना, जंगल से लकड़ी की खाद्य सामग्री तथा वन्यजीवों का शिकार करना। भील जनजाति की सामाजिक संरचना मुख्य रूप से समाजवादी है, जिसमें समानता और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा, भील समुदाय में सांस्कृतिक गाने, नृत्य, और रंगमंच कला की अमूल्य धरोहर है। हालांकि, भील जनजाति के लोगों को अपनी शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत है। सरकार को उनके विकास के लिए उपयुक्त योजनाओं की शुरुआत करनी चाहिए ताकी भील समुदाय के लोगों को समृद्धि और समानता का मार्ग प्र सशस्‍त ह

संत सिंगा जी महाराज

संत सिंगाजी मंदिर:- 
संत सिंगाजी समाधि स्‍थल 

संत सिंगा जी का परिचय:- निमाड के प्रसिध्‍द संत  सिंगा जी का जन्‍म म.प्र. के बडवानी जिले के खजूरी गांव एक गवली परिवार में हुआ था । इनके पिता जी का नाम श्री भीमा जी गवली और माता जी का नाम गवराबाई था। इनके तीन संतान थी जिसमें बडे भाई का नाम श्री लिम्‍बाजी और बहिन का नाम किसनाबाई था। 

संत सिंगा जी की चार संताने थी जो क्रमश: है  - श्री कालू जी, श्री भोलू जी, श्री सदू जी और श्री दीप जी।

सदियों से चली आ रही हमारी आध्‍यात्‍मिक मान्‍यताओं और उसके परिणामों से इन संतो का गहरा नाता रहा है। समाज में नैतिक मूल्‍यों और आदर्शों की स्‍थापना के लिए काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह के लिए परित्‍याग,आहार- विहार पर संयम से व्‍यवहार करने पर बल दिया है । 

शब्‍द के पार सामरथ संत सिंगाजी महाराज:-

ज्ञान की नौबत बाजे, संत सिंगाजी गाजे।
ब्रह्मगिर को हुआ अचरज, कहो कौम हुआ सामरथ।।

निमाड की संत परम्‍परा में संत सिंगाजी का स्‍थान सबसे उपर है। वे एक संत ही नहीं कवि-मनीषी भी थे। उनके साधना पथ में हुए अनुभवों को अपनी काव्‍यभाषा में कहना भी जानते थे। कहते हैं कि उन्‍होनें ग्‍यारह सौ पदों की रचना की थी। आज भी समूचे निमाड में गांव की भजन मंडलियां संत सिंगाजी के पद गाते हुए मिल जाती हैं ।

                     निमाडी साहित्‍यकार पद्मश्री पंडित रामनारायण उपाध्‍याय जी ने ''निमाडी का सांस्‍कृतिक इतिहास'' में एक जगह लिखा है-  '' आज निमाड के किसी भी गांव चले जाइए, वहां  पर आप सूर और तुलसी के पदों की तरह संत सिंगाजी के पद पाऐगें। निमाड में ऐसा कोई गांव ऐसा न मिलेगा जहां पर भजन मंडली न हो। और कोई भजन मंडली ऐसी न मिलेगी जिसे संत सिंगा जी के भजन याद न हो। मानो निमाड का संगीत संत सिंगाजी के भजनो के बिना अधूरा हो।'' संत सिंगाजी के पद निमाडी बोली के लिए अमूल्‍य धरोहर हैं। 

                संत सिंगाजी के परिवार में कोई आध्‍यात्‍मिक परम्‍परा नहीं थी। वे तो एक सामान्‍य गाय-भैंस चराने और दूध-दही का व्‍यापार करने वाले ग्‍वाले या गवली जाति के थे। पर अध्‍यात्‍म कोई वंशानुगत नहीं होता। किसी सामान्‍य व्‍यक्ति मे भी किसी समय कोई आंतरिक विस्‍फोट हो सकता है, जहां से उसका जीवन ही बदल सकता है। तब जीवन की धारा की बदलना स्‍वाभाविक है, जैसे बाल्‍मीकि जी के साथ हुआ वैसे ही संत सिंगाजी के साथ हुआ। 


संत सिंगाजी अपने गुरू के लिए कहते हैं:- 

गुरू बिन मारग कौन बताए 

दूर को जना रहे अहंकारी, मारग नजर न आए।।

एक बूंद की रचना सारी, जाका सकल पसारा ।

सिंगाजी नळ भर नजरां देखा, ओ ही गुरू हमारा।।


निर्गुण संत सिंगाजी महाराज:-

अगर निमाड अंचल से संत सिंगाजी का नाम यदि  हटा दिया जाए  तो निमाड का जनजीवन सूना हो जाएगा। साढे चार सौ वर्षों से संत सिंगाजी निमाड की अस्‍मिता की पहचान बन गए हैं। जहां मां नर्मदा के निर्मल जल में निर्गुण ब्रह्म अवगाहन करने लगे। संत सिंगाजी ने समूचे निमाड और मालवा तथा महाराष्‍ट्र के कुछ हिस्‍सों तक के किसान भाई ''हरिनाम की खेती खेडने लगे'' संत सिंगाजी ने निमाड के जीवन में कर्म और भक्ति का ऐसा मंत्र उनके अवचेतन तक में उतार दिया है कि निमाड के लोग चाहे सुख हो या दु:ख हो संत सिंगाजी को याद किये बिना नहीं रहते।


1. संत सिंगाजी की जीवनी का नाम क्‍या है - 

-  ''कहे जन सिंगा''

2. सिंगाजी के दोहे-

* चार खान चौरासी भरमों, जब नर देह धरी।

या देही में सुमरन करते, सोई बात है खरी।।

3. संत सिंगाजी की समाधि

संत सिंगाजी मूल समाधि स्‍थल 







4. संत सिंगाजी का मेला कहां लगता है-

- संत सिंगाजी का मेला, पिपलिया सिंगाजी, खण्‍डवा  में लगता है।

5. संत सिंगाजी का जन्‍म कब हुआ था- 

- संत सिंगाजी का जन्‍म संवत् 1574 वि. में खजूरी नामक ग्राम में हुआ जो वर्तमान में मध्‍यप्रदेश के पश्चिमी निमाड जिले में है।

6. खण्‍डवा से संत सिंगाजी समाधि स्‍थल की दूरी कितनी-

- खण्‍डवा से संत सिंगाजी समाधि स्‍थल की दूरी लगभग 50 कि.मी. है।


विशेष:- संत सिंगाजी समाधि स्‍थल किस जलाशय में स्थित है-

संत सिंगाजी महाराज की समाधि इंदिरा सागर के डूब क्षेत्र में स्थित है जो कि डैम के बैकवाटर में 72 फीट नीचे स्थित है मूल समाधि स्‍थल वर्ष में दो माह के लिए ही पानी से बाहर आती है । इस समाधि स्‍थल को परकोटे से सुरक्षित किया गया है और उसके उपर मंदिर का निर्माण किया गया है। इस स्‍थान पर 456 साल से अखंण्‍ड ज्‍योति जल रही है । यहां पर भक्‍तों द्वारा शुध्‍द घी प्रसादी के रूप में चढाया जाता है।


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