गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली

चित्र
 गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली परिचय "गोंड जनजाति की पारंपरिक चित्रकला" गोंड जनजाति भारत की सबसे प्राचीन और विशाल जनजातियों में से एक है, जो मुख्यतः मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में निवास करती है। गोंड शब्द 'कोंड' से बना है, जिसका अर्थ होता है 'पहाड़ी लोग'। 🏠 रहन-सहन और निवास गोंड समुदाय आमतौर पर गांवों में समूहबद्ध होकर रहते हैं। उनके घर मिट्टी और बांस की सहायता से बनाए जाते हैं और छतें पुआल की होती हैं। दीवारों को 'दिगना' नामक परंपरागत चित्रों से सजाया जाता है। 🍲 भोजन और खान-पान गोंड जनजाति का खान-पान पूरी तरह प्रकृति पर आधारित होता है। वे मक्का, कोदो, कुटकी और महुआ का उपयोग अधिक करते हैं। महुआ से बनी शराब उनके सामाजिक उत्सवों का अहम हिस्सा है। 💍 विवाह और परंपराएं गोंड समाज में विवाह एक सामाजिक आयोजन होता है। दहेज प्रथा नहीं के बराबर होती है। विवाह से पूर्व लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद कर सकते हैं। विवाह गीत, नृत्य और पारंपरिक वस्त्र पूरे समारोह को रंगीन बना देते हैं। 🎨 कला और संस्कृति गोंड चित्रकला ...

भील जनजाति

                            भील जनजाति                                

फोटो - गूगल साभार

भील जनजाति पश्चिम मध्‍यप्रदेश के झाबुआ, गुजरात और राजस्‍थान में देश की एक बडी जनजाति है। भीलों की चारों उपशाखाओं भिलाला, बारेला, पटलिया और राठ में गुदने का चलन है। पुरूष आंख की कोर के समीप , ठुड्डी, हाथ पर गुदने लिखाते हैं। भीली महिलाओं के गुदने दूसरी वन्‍य जातियों से सर्वथा भिन्‍न रूपाकरों में प्रचलित है। त्‍वचा के काले रंग में गोदने छिप जाते हैं। गौरवर्ण गुदना के लिए सबसे अच्‍छा कैनवास होता है। गौरवर्ण पर गुदने फूलों के समान खिलते हैं। भील की उपशाखाओं की महिलाओं का प्राय: गौरवर्ण होता है। त्‍वचा का रंग गोरा होने के कारण उन पर हरित नील वर्णी गुदने खूब फबते हैं। भीलों की जितनी सुंदर वेशभूषा और गहने होते हैं, उतने ही सुंंदर उनके गुदने होते हैं। साज- सज्‍जा के मामले में भील- भिलाला संसार की सबसे रंगीन जनजाति है। स्‍त्री और पुरूष दोनों समानरूप से कपडों , गहनों और गुदनों के प्रति सजग रहते हैं। पर्व -त्‍यौहारों , हाट- बाजारों में सजे-धजे भली युवक युवतियां समूह में सहज रूप  से देखे जा सकते हैं। भीली बोली में गोदना को  '' गुदावणो'' कहते हैं। गुदावण का कार्य प्राय: स्त्रियां करती हैं।भीली अंचल में मंडला की बादी ओझा की तरह किसी खास जाति की स्त्रियां गोदना कार्य नहीं करती हैं। यहां पुरूष भी गोदना कार्य करते हैं। भीली अंचल में मंडला की बादी या ओझा की तरह किसी खास जाति की स्त्रियां गोदना कार्य नहीं करती हैं।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for reading...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

NOWGONG CHHATARPUR ( History of Nowgong)

जिला छतरपुर के किले एवं गढियां

संत सिंगा जी महाराज