संदेश

जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली

चित्र
 गोंड जनजाति की परंपराएं और जीवनशैली परिचय "गोंड जनजाति की पारंपरिक चित्रकला" गोंड जनजाति भारत की सबसे प्राचीन और विशाल जनजातियों में से एक है, जो मुख्यतः मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में निवास करती है। गोंड शब्द 'कोंड' से बना है, जिसका अर्थ होता है 'पहाड़ी लोग'। 🏠 रहन-सहन और निवास गोंड समुदाय आमतौर पर गांवों में समूहबद्ध होकर रहते हैं। उनके घर मिट्टी और बांस की सहायता से बनाए जाते हैं और छतें पुआल की होती हैं। दीवारों को 'दिगना' नामक परंपरागत चित्रों से सजाया जाता है। 🍲 भोजन और खान-पान गोंड जनजाति का खान-पान पूरी तरह प्रकृति पर आधारित होता है। वे मक्का, कोदो, कुटकी और महुआ का उपयोग अधिक करते हैं। महुआ से बनी शराब उनके सामाजिक उत्सवों का अहम हिस्सा है। 💍 विवाह और परंपराएं गोंड समाज में विवाह एक सामाजिक आयोजन होता है। दहेज प्रथा नहीं के बराबर होती है। विवाह से पूर्व लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद कर सकते हैं। विवाह गीत, नृत्य और पारंपरिक वस्त्र पूरे समारोह को रंगीन बना देते हैं। 🎨 कला और संस्कृति गोंड चित्रकला ...

बुन्‍देलखण्‍ड के दुर्ग ( MP Ke Durg)

  बुन्‍देलखण्‍ड के दुर्ग :- कालिंजर का दुर्ग अजयगढ का दुर्ग  रसिन का दुर्ग मडफा  का दुर्ग शेरपुर सेवडा का दुर्ग रनगढ का दुर्ग तरहुआ का दुर्ग भूरागढ का दुर्ग कल्‍याणगढ का दुर्ग महोबा का दुर्ग सिरसागढ का दुर्ग जैतपुर का दुर्ग मंगलगढ का दुर्ग मनियागढ का दुर्ग बरूआसागर का दुर्ग ओरछा का दुर्ग झाँँसी का दुर्ग गढकुढार का दुर्ग चिरगांव का दुर्ग एरच का दुर्ग उरई का दुर्ग कालपी का दुर्ग दतिया का दुर्ग ग्‍वालियर का दुर्ग चन्‍देरी का दुर्ग बढौनी का दुर्ग सिंगौरगढ का दुर्ग पन्‍ना का दुर्ग छतरपुर का दुर्ग राजनगर का दुर्ग बटियागढ का दुर्ग बिजावर का दुर्ग या जटाशंकर का दुर्ग बीरगढ का दुर्ग धमौनी का दुर्ग पथरीगढ का दुर्ग बारीगढ का दुर्ग गौरीहार का दुर्ग कदौरा का दुर्ग कुलपहाड का दुर्ग तालबेहट का दुर्ग देवगढ का दुर्ग ।

संत सिंगा जी महाराज

चित्र
संत सिंगाजी मंदिर:-  संत सिंगाजी समाधि स्‍थल  संत सिंगा जी का परिचय:- निमाड के प्रसिध्‍द संत  सिंगा जी का जन्‍म म.प्र. के बडवानी जिले के खजूरी गांव एक गवली परिवार में हुआ था । इनके पिता जी का नाम श्री भीमा जी गवली और माता जी का नाम गवराबाई था। इनके तीन संतान थी जिसमें बडे भाई का नाम श्री लिम्‍बाजी और बहिन का नाम किसनाबाई था।  संत सिंगा जी की चार संताने थी जो क्रमश: है  - श्री कालू जी, श्री भोलू जी, श्री सदू जी और श्री दीप जी। सदियों से चली आ रही हमारी आध्‍यात्‍मिक मान्‍यताओं और उसके परिणामों से इन संतो का गहरा नाता रहा है। समाज में नैतिक मूल्‍यों और आदर्शों की स्‍थापना के लिए काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह के लिए परित्‍याग,आहार- विहार पर संयम से व्‍यवहार करने पर बल दिया है ।  शब्‍द के पार सामरथ संत सिंगाजी महाराज:- ज्ञान की नौबत बाजे, संत सिंगाजी गाजे। ब्रह्मगिर को हुआ अचरज, कहो कौम हुआ सामरथ।। निमाड की संत परम्‍परा में संत सिंगाजी का स्‍थान सबसे उपर है। वे एक संत ही नहीं कवि-मनीषी भी थे। उनके साधना पथ में हुए अनुभवों को अपनी काव्‍यभाषा में कहना भी जानते थे। क...

बुन्‍देलखण्‍ड का पहला परमार शासक और उसका कार्यकाल

पुन्‍यपाल परमार और बुन्‍देलखण्‍ड    पुन्‍यपाल परमार का नाम पवाया के शासक के रूप में बुन्‍देलखण्‍ड के इतिहास में तेरहवीं सदी के मध्‍य में मिलता है। कहीं-कहीं पुन्‍यपाल परमार को 'प्रनपाल परमार' भी लिखा गया है। यह पवाया प्राचीन इतिहास की सुप्रसिध्‍द नगरी पदमावती है। यहां प्रथम शताब्‍दी से चौथी शताब्‍दी तक नागों का राज्‍य रहा था। पदमावती के संबंध में प्राचीनतम उल्‍लेख विष्‍णुपुराण में भी मिलता  है। सातवीं सदी की कृति बाणभट्ट के हर्षचरित में भी पदमावती का उल्‍लेख मिलता है।                                                            इसी क्रम में संस्कृत कवि - नाटककार भवभूति ने अपने नाटक ' मालती माधव' में भी इस नगर के गौरव का उल्‍लेख किया है। ग्‍यारहवीं सदी की कृति 'सरस्‍वती कंठाभरण' परमार राजा 'भोज कृत' में भी पदमावती का उल्‍लेख आया है, यहां कभी विश्‍वविद्यालय भी था। और देशक के सुदूर भागों से यहां विद्वान एवं छात्र अपनी ज्ञान पिपास...

सकारात्‍मक भावनाएं बनाम नकारात्‍मक भावनाएं

  पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स क्या हमें इन दोनों  इमोशन्‍स की ही ज़रूरत है? अक्सर हम सकारात्मकता यानी पॉज़िटिविटी का मतलब पॉज़िटिव इमोशन समझ लेते हैं.। जब भी किसी ख़ुशहाल व्यक्ति की कल्पना की जाती है हम यह मानकर चलते हैं कि उसके अंदर पॉज़िटिव इमोशन्स कूट-कूटकर भरे गए होंगे। बल्कि हम यह भूल जाते हैं कि इंसान पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स यानी सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को उचित मात्रा में मिलाकर बनाया हुआ एक प्राणी  है।  जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह इंसान की  भावनाओं के भी दो पक्ष हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक भावनाओं की तरह ही नकारात्मक भावनाएं भी जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं।  दरअसल हम कह सकते हैं कि नकारात्मक भावनाएं ही हैं, जो हमें सकारात्मक भावनाओं के महत्व को समझाने में मदद करती हैं।  तो फिर हम इन दोनों भावनाओं के  महत्‍व और  इनका हमारे जीवन में उपयोगिता के बारे  में समझते हैं -  पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स  क्या हैं    ?  वह सोच या भावनाएं, जो हमें आमतौर पर अपने आप को अच्छा म...